Friday 17 February 2017

486----आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
अष्ठम अध्याय 
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !

(समर्पित है देश  के किसानों के नाम ;गर्मी, सर्दी या बरसात ;उनकी महनत व परिश्रम के प्रतिफल जीवन चलता है हम,जिनकी सेवाओ से  प्रेरित व सुरक्षित हैं)

भूतादि का दिन भी ,
शुरू रात्रि से होता है
 विचरण करते प्रकृति के वश
 यहीं अचम्भा होता है
8/52
अव्यक्त वह परम तत्व,
विलक्षण उसकी लीला सारी ,
नष्ट जगत में सब होता,
 यही अनोखी नीति है. न्यारी,
8/53
अव्यक्त नष्ट (कभी )ना होता है
परे समझ से होता है
ये रहस्य भरा है! जग सारा
जीवन अपना भी होता है
8/54
 क्यों अाना ,क्यों जाना ?
माया मोह में क्यों हम डूबे ?
पूर्ण उस की रचना है !
जान सके ना ,क्या हम बूझे ?
8/55
वही पूर्ण ,सम्पूर्ण है
पूर्णता भी उसमें निहित
मिले ना उस की थाह कोई
अपूर्ण है हम;दुनिया में चिह्ित
8/56
अध्याय समाप्त

मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा

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