आज का गीता जीवन पथ
सप्तम अध्याय
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के सभी प्रशासनिक अधिकारिओं के नाम; सरहद परसेना ,घर में इनका कार्य व व्यवहार
,जिनकी सेवाओ से हम प्रेरित व सुरक्षित हैं)
मोहित होता जीवन में
खुशी मनाता,जीवन पाता
पागल बनता ,संग्रह करता
धन्य स्वयं को कहलाता
7/41
ज्ञानवान से क्या लेना
मांगे वो जो नाश वान
कृपा चाहते,खुशी मांगते
जग में खोया है इंशान
7/42
जैसा मेरा रूप देखता
बना देवता भजता है
मेरा भक्त मुझे प्राप्त
अन्त में मुझसे मिलता है
7/43
अनुत्तय, अविनाशी, परम भाव
समझ से परे है जन मानुष
अपना जैसा मुझे मानते
समझे गुणों में श्रेष्ठ ये मानुष
7/44
श्रेष्ठ समझते हैं सब
अपना जैसा मुझे मानते
ना समझें वे योग की माया
मरना जीना मेरा मानते
7/45
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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