आज का गीता जीवन पथ
सप्तम अध्याय
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के सभी प्रशासनिक अधिका रिओं के नाम; सरहद परसेना ,घर में इनका कार्य व व्यवहार
,जिनकी सेवाओ से हम प्रेरित व सुरक्षित हैं)
तर जाता है वो ,
खेल जगत का समझ गया,
सब झंझट से दूर रहे ,
मर्म समझ में उसके अाया
7/21
आलोकिक, अद्भुत माया है,
नियम जटिल,बड़े दस्तूर
मोहित इतना कर लेते
लोग न जायें इनसे दूर
7/22
भगवत साक्षात्कार दुरूह !
मिलना होगा दूर की बात
माधव! तुम भी सोचो ना
कैसे सुधरें अपनी मति
7/23
माहाबाहो!मन में संशय है,
मार्ग से भटका जब कोई ,
अनाश्रित, निर्मोही, दिशा विहीन
क्या मुकाम मिलेगा उनको कोई?
7/24
छिन्न-भिन्न बादल हो जाता ,
दिशा भटकते बहते रहते
क्या ये गति उस योगी की?
गम सहते और खो जाते
7/25
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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