Sunday 8 January 2017

418-----आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
पंचम अध्याय 
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के वैज्ञानिकों के नाम जो असमय मौत का शिकार बने)
हे ! माधव भ्रमित हूं इतना मैं,
समझ सोच से बाहर है
कर्मयोग और कर्म सन्यास,
कर्म कौन सा बेहतर है
5/01
साथ -2 दोनों चलते ,
सम्भव कैसे हो सकता ?,
विपरीत दिशा मैं चलके ,
मुकाम कैसे मिल सकता?,
5/02
पार्थ !भ्रम का प्रश्न नहीं उठता ,
कल्याण के साधन दोनों ,
कर्म योग है सुगम जहां ,
कर्म को समझो,कर्म को मानो
5/03
राग द्वेष से मुक्त रहे
कामना , जिनसे दूर
हर्ष-विषाद में फर्क नहीं
अभिलाषा रहती जिनसे दूर
5/04
साधु सन्त फकीर महात्मा,
बन सन्यासी सेवा करते
ज्ञान मिले प्रकाश फैलता
दिल से जन की सेवा करते
5/05




दोनों ही इस जहां में .
सम्यक विचार रखें
(दिल से )अपनाओ   किसी एक को
सबका ये उद्धार करें
5/6
ज्ञान योग भी राह दिखाता ,
कर्मयोग भी न रहता पीछे ,
परम धाम को प्राप्त करें
छोड़ मूर्खता ,पार्थ! तू पीछे
5/7
यथार्थ को समझो,पार्थ!,
दोनों हैं रूप समान
इक दूजे के पूरक हैं
छिपा रहस्य यही तू मान
5/8
कर्मयोग का रहे अभाव ,
कर्तापन का त्याग कठिन
परम तत्व को प्राप्त करें
दिल से योगी करे मनन
5/9


राह आसां बनाते दोनों ,
जीवन के तार समझने को ,
परम तत्व से होगा मिलन,
राह अलग है जाने को
5/10
जितेन्द्रय इस जहां में ,
मन भी वश में रहता है
सम्पूर्ण जगत प्रतिबिम्ब है उसका
विशुद्ध अन्तःकरण रखता है
5/11
सोते जगते खाते पीते ,
सूघें सुनते चलते - चलते ,
आंख मूदते ,आंख खोलते,
देखे; त्यागें भोजन करते करते
5/12
ग्रहण करें ,त्याग करें
श्वास चले,बोलें कहते
अपना कर्म करें इंद्रियां
देखें ;जीवन में जीते जीते
5/13
सांख्ययोगी (ज्ञानधारा में विश्वास) समझते इसको,
तत्व के मर्म की समझ रखते
स्वयं कर्म में लीन इन्द्रियां
कर्म करें वे जीते जीते
5/14

स्वतन्त्र स्वभाव है इनका,
लीन कर्म में रहती है ,
नहीं हस्तक्षेप मेरा भी
अविरल चलती रहती है (इन्द्रियां)
5/15
कर्म करें सारे मानव,
कर्म अर्पन भी करते हैं,
आसक्ति से रहे युक्त
कमल की भांति खिलते हैं,
5/16
जैसे जल में कमलपांति,
जल में रहते ,रहें विलग ,
असर प्रभाव न होता उनपे ,
रहते प्रायः अलग अलग(इन्द्रियां कर्म )
5/17
कर्मयोगी होता है.
वो आसक्ति ;न पटके पैर
न तेरा है न मेरा है
ना ही ममता ,ना ही वैर
5/18
मोह ममता बुद्धि से दूर ,
मन बुद्धि समता शरीर
शुद्ध करे अन्तरमन को
परहित धरा पे उसका शरीर
5/19
सकाम पुरूष की दुनिया है
कर्मफल की चाह जिसे
(पर) योगी रहे परमबृहम मे लीन
कर्मों के फल का त्याग उसे
5/20

शांति चाहता है योगी,
कठिन मार्ग अपनाता है,
परम तत्व से मिलन लक्ष्य है,
धन सर्वोत्तम यही मानता है
5/21
नव -द्वारों का घर है, सुन्दर
आसक्ति बढ़ाता ,मन हरसाता
सकाम पुरूष ने माना सब कुछ ,
जीवन ज्योति सदा जलाता
5/22
योगी को ये सुन्दर घर,
महत्वहीन ही लगता है
रहता इसमें समय काटता,
लीन बृहम में रहता है
5/23
उपयोग करें उसका ऐसे ,
सबकर्मों का दिल से त्याग,
हर्ष मिले या कष्ट उठायें ,
फर्क नहीं जो आये भाग
5/24
निरा निपट निरक्षर हम ,
हर पल रहते स्वार्थ में लिप्त ,
जीवन के भ्रम में जीते ,
कभी ना होते हमसन्तुष्ट
5/25
प्रभु दिये पूर्ण आजादी,
कर्त्ता दिखते इस जगत में ,
जैसा हम करते रहते
फल भी मिलते इस जगत में
5/26
कर्म के कर्त्ता हम
कर्मों की राह चुनते है
स्वभाव भी बनता कर्मों से
फलेच्छा में रहते हैं
5/27
रहस्य समझते ज्ञानी
हमको भी समझाते
अल्पकाल के जीवन में
रहन जायें हम उलझते
5/28
अज्ञान ढ़के ज्ञान हमारा
सब कुछ करते उसके नाम
अच्छा हो, बुरा मिले
वो ग्रहण करे न अपने नाम
5/29
पाप भी होते ,फलेच्छा भी जीवित
त्ृष्णा कभी ना बुझती
यहीं छिपा अज्ञान हमारा ,
बात समझ में न अाती
5/30

रहस्य से पर्दे हट न पाते
अन्धकार छाया रहता
पदार्थ वस्तु सुख का माध्यम
दुख भी प्राणी सहता
5/31
अल्पकाल की माया में
कायम इतना भ्रम  है
कभी ना हल  मिल पाते
कभी न रुकता श्रम है
5/32
लाख करोड़ो प्राणी हैं ,
सबके दाता हैं भगवान,
स्वार्थ में नियम बनाते हम ,
स्वयं को कहते सबसे महान
5/33
जो स्वयं को अच्छा लगता है,
अनुरूप उसी के चलते हैं ,
पीठ थपथपाते स्वयं ही हम,
बदनाम उसीको करते हैं
5/34
दर्द हमें अनुभव होता ,
चोट हमारे लगती है ,
अत्याचार करें जब हम ,
खुशी अनोखीमिलतीहै
5/35
नियम शाश्वत दुनिया में ,
दुनिया जिनसे है कायम,
खोज हमारी सदा अधूरी ,
बड़ा हमारा सबसे तम
5/36
विपरीत जरा हटके सोचें
अ-ल्पकाल का घेरा है
सब कुछ जाने वाला है
आज जो तेरा मेरा है.
5/37
नव वर्ष -2017की शुभकामनाये
कृष्णा की कृपा बरसे !

ज्ञान चक्षु खोल के जिसने,
परम तत्व को जान लिया,
जीवन सफल किया उसने ,
छिपे रहस्य को जान लिया
5/38
आने वाला पल भी ,
जाने वाला है
क्रम रहेगा जारी ,
कभी न रूकने वाला है
5/39
अल्प वक्त है अपने पास,
प्रेम ,कर्म ,सहयोग करें,
इन हाथों से हो भला ,
दर्द सभी का दूर करें
5/40
काल संक्रमण आता है
शोषित होते हम
कौन जहां का शख्स यहां ,
न देखे जिसने अपने गम
5/41
जो ज्ञान मिला हमको,
हम भी करें प्रसारित
तम को दूर हटायें दिल से ,
खुशी करें हम भी रोपित
5/42

आने जाने का क्रम ,
सदियों से चलता  रहता है
वक्त बदलने की ताकत ,
कौन यहां पे रखता है
5/43
ज्ञानी योगी पुरूष यहां
उपाय ढूंढते रहते हैं
आने जाने से छूट मिले
यही मार्ग अपनाते हैं
5/44
जो मनुष्य करता है !
कर्मों का भागी बनता है
फल जो भी मिलता हो
स्वीकार -स्वभाव वह रखता है
5/45
कर्मों की इस दुनिया में
ईश्वर भागी नहीं बनता है
पाप कर्म या शुभ कर्म
फर्क उसे नहीं पड़ता है
5/46
)

अज्ञान ढ़का ज्ञान को
मोहित सबको करता
परम तत्व से दूरी बढ़ाता
ज्ञान से मोहभंग कराता
5/47
ज्ञानवान बनते हैं जब,
ज्ञानचक्षु खुल जाते हैं ,
अज्ञान हटता जाता है
अनुभूति अनोखी पाते हैं,
5/48
सूर्य समान आलोंकित करता ,
प्रकाश पुञ्ज को फैलाता,
सूर्य समान नूर चमके ,
ज्ञान वो सच्चा पाता
5/49
मन में बृह्म,
कर्म में बृह्म
भजता बृह्म ,
तिष्ठति बृह्म
5/50
स्थिति जिसकी निष्ठा बृह्म
पाप रहित वो हो जाता
अपना वृत्ति वह प्राप्ति करे
लीन बृह्म में (वो) हो जाता
5/51
ज्ञानी ऐसे समदर्शी
सच्चे बृाह्मण कह लाते
गौ,हाथी कुत्ता, मानव
समान स्वभाव वे अपनाते
5/52

मन में स्थिति समभाव ,
भेदभाव वे ना करते
सभी को माने एक समान
व्यवहार सभी से वे करते
5/53
(सभी को माने एक समान –Equality amongst all is stressed here ,whereas in the name of caste and creed ,all evils have been imposed .This is the twisting and playing with the facts or interpolation ,more particularly by the Britishers like William Hunter, St.Francis, Will-Du Wrath, Grifith and Macaulay etc.)

जीते जी संसार को जीता
सबके साथ एक समान
मन भी दूषित न हो
वही तो ज्ञानी बने महान
5/54
दाग नहीं ईश्वर में
बदनाम कभी ना वे करे
निद्रोष्  ,सम,वो तटस्थ
हस्तक्षेप न कभी करे
5/55


मनुष्य कर्मों का दास
अच्छे को सदा वो धाता
पीठ थपथपाता अपनी वो
स्वयं को महान जताता
5/56

अच्छे बुरे ,कैसे भी कर्म ?,
नाम मेरा वो लेता है
बदनाम करें परम तत्व !,
कर्म स्वय वो करता है,
5/57
स्थिर बुद्धि ,संशय रहित ,ब्रबृह्म बेत्ता !,
प्रिय भी प्राप्त करे ?,हर्षित ना वो होता
अप्रिय भी उसके कर्म लिखा ,
विचलित कभी ना वो होता
5/58
वही समझता परमानन्द !,
बाह्य जगत ना दे सकता,
लीन स्वयं को करता वो,
बृहम तत्व में सब मिलता
5/59
अन्त:करण विशुद्ध रहे ,
ध्यानयोग में मगन रहे
परमतत्व से मिलने का फल!
सबसे दुलर्भ? श्रेष्ठ रहे
5/60

विषयी पुरुष सुख को
परिभाषित करते अपने हिसाब
नहीं समझते दुःख का कारण
विषयों में देखें ,ढ्ढें अपने जबाव
5/61
पार्थ !समझना इनको ,?गम्भीर बनो
ज्ञानी जाने क्या हकीकत?,
परम तत्व का आनन्द मिले
इससे बड़ी क्या जरूरत ?
6/62
जन्म सफल होता है
साधक होता द्ृढ़ प्रबल
काम ,क्रोध के वेग को रोके
क्षमता उसकी अखण्ड प्रबल
6/63
स्व- इच्छा शरीर त्याग की,
मन में योगी रख ता है
हंसते -2सुखी -जीवन त्यागे
असली सुख समझता
6/64
अनन्त सुख देता जीवन,
रमण इसी में करता है,
ज्ञानवान वो आत्मा से ,
जग को आलोकित करता है
6/65
Note ----A real story----Debraha Baba whose ashram I have visited too is the live example, He took Jal-samadhi (leaving Human body by sinking oneself till death ).My maternal uncle ,who served as Police Inspector told me that he too visited him ,and before him, he saw a lady requesting him for a boy-child ,But Baba refused it,She requested again and again and Baba said,"You have to pay for that" She agreed ,she had one girl child. The moment she left his ashram within 30 minutes ,people saw her coming back weeping and crying, Her car met with an accident ,and her only girl child was no more ,as she diedin the accident,Then he replied,” I already refused you,But what this is destined ,Now go you shall be blessed with a child soon..”....Such great soul lived here and surprisingly  we believe in the Epicurean theory .-eat,drink and be marry and forget the great tradition received ;left  by such saints )

परमबृह्म में लीन पुरुष
सांख्य योगी फल पाता निशिचत
 भाव एकाकी सदा वो रखते
सदालीन वो रहता निशिचत
6/66
जीवन में बस एक उपलब्धि !
परमबृहम परमात्मा से हो मिलन
कामक्रोध चित्त जो जीता
जीवन उसका ; ज्ञान प्रयास और ध्यान
6/67
लगे कर्म उसे पुनीता
मन ना दूषित हो उसका
स्वयं भला ,स्वयं से भला
जीवन मार्ग दिखाता उसका
6/68
मन ना जिसका भटके,
 विषय भोग ना बाधित करते
 निकाल फेंक बाहर देता
बृह्म का सदा वे चिन्तन करते
6/69
दृष्टि केद्रित भृकुटी मध्य,
 प्राण वायु रहे अधीन,
अपान वायु भी सम रखते
जिनका अपना सर्वाधीन
6/70
 जीता जिनने मन,बद्धि ,
इच्छा, भय, क्रोध, से मुक्ति पाया
भजता परमबृह्म दिन रात
मोक्ष परायण :मुनि वो कहलाया
6/71
 मेरा भक्त वही होता ,
सब य ज्ञ तपों को भोगे
निस्‍वार्थ ,दयालु, प्रेमी, वो
परहित में सब वे त्यागे
5/72
लीन रहें मुझमें हरदम ,
आत्मा भी हो निच्छल ,
शान्ति ,सदा वो पायेगा
परमानन्द मिलेगा हर पल
5/73
भेदभाव ,मनभेद नहीं
साफ स्वच्छ है चित्व उसका
सेवा से खुशियाँ मिलती
 रोग शोक से मुक्त वो रहता
5/74
पंचम अध्याय समाप्त

मेरी विनती

सभी मनोरथ पूरे  हों
जो साथ चले है मेरे साथ
दुख दर्द की सीमा से उ्पर
तू कृपा का रखना अपना हाथ
कृपा तेरी काफी है
प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा
गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते
कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना
बस ध्यान में रखना कृष्ना तू


निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I

कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा

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