Friday 13 January 2017

0426---मां भारती का कर्जहै

मां भारती का कर्जहै
(gha-24/1834Hindi poem)
(हजारों वर्ष का )
गौरवमयी इतिहास  है अपना ,
अरे !गैरों ने भी माना है सच ,
“घर अपना ये सुन्दर विश्व
कुछ नहीं आगे इसके बस!
क्या मिला ?कहते ,पिटते गये हैं,
कुछ तो घर के अन्दर पीटे
गर्व से कहते हैं हम
“गमों के दिन अब तो बीते”
जो गया है दुनिया  छोड़के ,
कभी वापस आता नहीं,
 नाम से बड़ा फर्क पड़ता है
ओसामा को दो गज जमीं नहीं
ये नाम बदनाम ही तो जीवित हैं
चैन से रहने देते नहीं
 जो प्यार करते हैं प्यार के हकदार हैं
दिलों को तोड़ते हैं जो
“सहते रहें “अब वक्त नहीं
कभी अफजल हीरो बनता,
गांधी -प्रप्रौत्र भगत सिंह क़ो देता गाली
मनोबल तोड़ते हैं देश के सच्चे सिपाही का
 मीडिया खुश हो बजाता है ताली
कब तक सहते रहेगें
देश धर्म को गाली सुनते रहेंगें
जब हद होती है तो कहेगें
और जरूरत पड़ी कानूनन लड़ेगें
आवाज उठाना भी मुहिम का अंग हैं
देर ना होजाये साथ आना भी संत्संग है
देर हुई तो बुरा होगा
 एक बार सह चुके है
खून बहा है दर्ज इतिहास के पन्नों पे
कितनी बार हम सुन चुके हैं
प्रजा तन्त्र में विरोध सशक्त माध्यम है
सुनाना है उनको ,लेना है जिनको निर्णय
आप तैमूर कहो तो क्या बुराई है ?माना
क्यों शोर है ?जब शिवा और गोडसे से होता है परिणय
गलत जहां भी हो ?
बुरा मानना फर्ज है
हां !हर भारतीय को खुशी देना ही तो ,
मां भारती का कर्जहै
(अर्चना राज)

No comments:

Post a Comment