आज का गीता जीवन पथ
षष्ठम अध्याय
जय श्री कृष्णा.
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के अर्द्धसैनिक बलों एवं पुलिस के नाम,जिनकी सेवाओ से हम प्रेरित व सुरक्षित हैं)
योग की माया खुली चुनौती ,
नाश दुखों का करती है ,
यथा योग्य खाना, पीना ,सोना
कर्मों से हल करती हैं
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माया अति बुरी बला है,
अर्जुन !तुम समझो सीधे अर्थों में,
“समय
पे जाग्रत ,कर्मों को करना “,
यही अर्थ निकलता शब्दों से
6/32
इसको कहना बहुत जरूरी,
अतिवश
में चित्त किया है वो,
मिली
प्रभु कृपा युग युग में,
स्पृहार
रहित भोगों में रहा है वो
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आश्चर्य तुम्हें होगा ,पार्थ!,
वायु बिन दीपक न जलता है ,
यही हाल चित्त योगी का,
जब प्रभु मिलन न होता है
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कुछ तो योगी कठोर तपस्या,
जिद
स्वभाव से करते हैं,
ध्यान
से बुद्धि,शुद्धि हुई जब,
रसपान प्रभु मिलन का करते हैं
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(To be continued)
मेरी विनती
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
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