Wednesday, 29 March 2017

529----आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
बारहवां अध्याय 
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश की प्रैस के नाम ;IV PILLAR; इतनी असुरक्षा और PRESSING SITUATIONS के मध्य उनकी महनत परिश्रम के प्रतिफल केवल हम जागररू्क और अप- टू-डेट रहते है ,हम उनकी सेवाओ से प्रेरित गौरवान्वित भी होते हैं)



(जो) पुरुष इसी जहां में, राग द्वेष
किंचित स्वार्थ नहीं रखता
 मानवता उसमें जीवित है
दिल से प्रेम सभी करता है
12/29
ममता गरूर ना डर हो ,दिल में
सुख दुख में भी सम रहता,
इन्द्रीय जिस के वश में हैं
योगी है ;सन्तुष्ट रहता
12/30
अर्पित तन मन मुझको करता,
क़्ति भा्व में डूबा रहता,
 मुझको मेरा भक्त प्रिय है
जग सारा खुल के कहता
12/31
उद्वेग प्राप्त ना होता है ,
ना जीव को देता है उद्वेग,
हर्ष-अमर्ष में सम है
गति न मोड़े उसका वेग
12/32
मन में इच्छा आकांक्षा ,
भीतर बाहर से है शुद्ध,
 पक्षपा्त से  दूर वह रहता,
 दुख ना करता मन को अशुद्ध
12/33
आरम्भ का भी त्याग,
मन से कोमल चंचल,
 प्रिय जहां में मुझको है ,
नहीं चलता हैं बातें बदल
12/34
कभी ना हर्षित वो होता ,
खुशी चाहे माहौल बनाये ,
दुखड़े पग-2 उसके हो ,
जग चाहे माखौल उड़ाये
12/35

शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा



No comments:

Post a Comment