आज का गीता जीवन पथ
18वां अध्याय
*Chapter 18*
_Let Go, Lets move to union with God_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 8 वां अध्याय समर्पित है सभी शिक्षकों के नाम; जिनकी मेहनत से देश-विदेश में बच्चों का जीवन न केवल ज्ञानवान व समृद्धशाली बनता है बल्कि स्वयं को मोमबत्ती की तरह जला कर देश- विदेश में उजाला करते हैं , जिनके लिए समाज कृतज्ञ रहता है अतः हम सबको और भी परिश्रम कर देश का नाम रोशन करना चाहिए. गीता पाठ से स्पष्ट है कि जीवन में ;अंत में कुछ भी नहीं)
कुछ लोग जहां में ऐसे मिलते
विषय इंद्रियां आकर्षित करती
डूब जाते हैं गहरा वो,
कभी ना उनको निकलने देती
18/74
काल किया निर्धारित
समय पे सब अच्छा लगता
भोग काल में
भी भो गे
अमृततुल्य फल भी मिलता
18/75
सोच भी राजस है
उसकी
विषय भोग है जिनका स्थान
फल भी वैसा मिलता है
चाहे सोचे वे
कितने महान
18/76
विषय भोग जो अपनाते
पीठ वे अपनी स्वयं ठोकते
चाहे कितना इतरा लें
कभी ना अच्छा फल वे पाते
18/77
निद्रा, आलस ,प्रमाद ,
सुख इनसे जो मिलता है
क्षणिक होता जीवन में यह
क्षण का आनंद मिलता है
18/78
सुख तामसी मिलता है उनको
चाहे कितना हो आत्म मोहित
पल भर के सुख की खातिर
मन उन का पाता है राहत
18/79
निद्रा आलस प्रमाण
लगता जैसे तीन बहन
राज जहां में चलता है
चुप के करते सारे सहन
18/80
इंच -2तुम नापो अर्जुन
जहां में इनका इतना प्रभाव
सहज़ आकर्षित होता है मन
लगता जैसे कोई देता दबाव
18/81
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी
है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े
I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
No comments:
Post a Comment