आज का गीता जीवन पथ
17वां अध्याय
Chapter 17*
__Choosing the right over the
pleasant is a sign of power_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 7वां अध्याय समर्पित है सभी वन
रक्षक व वन अधिकारियों के नाम; जिनकी मेहनत से देश -विदेश हरा -भरा रहता है ,और हम सभी को प्रेरित करते हैं)
“दंभ भरते ,योग्य स्वयं को जाने
जो कहते सच ,उसको माने
अनंत कामना दिल में रखते
देवों से ना कम माने
17/9
भोजन भाता उनकी इच्छा
तीन प्रकार का होता है, सुन ”
“यज्ञ तप और दान भी तीन
विस्तृत वर्णन, पार्थ अब तू मुझसे सुन
17/10
प्रिय सात्विक व्यक्ति जहां में
साफ शुद्ध है दिल उसका
उनका स्थिर रहता खानपान
खाते दिल भी जीते सबका
17/11
वाणी उनकी मधुर है
प्रेम बढ़ाते इसी जहां
आयु बुद्धि बल वा सुख
देता उनको यही जहां
17/12
जैसा खाए अन्न
वैसा होए मन
सदिया कहती आई
भोजन से बनता तन-मन
17/13
प्रिय है व्यक्ति जहां में सबके
प्रेम प्यार की बातें करते
मुझको भी देते हैं खुशी
कभी न जीवन में भी डरते
17/14
खान पान भी राजसी होता
कड़वा ,खट्टा, तीखा ,गरम
दुख, चिंता ,रोग बढ़ाता
ना होती उन को कोई शर्म
17/15
भोजन बासी ,अधिपका, कच्चा
अपवित्र उच्छित होता है
तामस व्यक्ति की है पसंद
खाते ;उनको प्रिय लगता है
17/6
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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