आज का गीता जीवन पथ
18वां अध्याय
*Chapter 18*
_Let Go, Lets move to union with
God_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 8 वां अध्याय समर्पित है सभी शिक्षकों
के नाम; जिनकी मेहनत से देश-विदेश में बच्चों का जीवन न केवल
ज्ञानवान व समृद्धशाली बनता है बल्कि स्वयं को मोमबत्ती की तरह जला कर देश- विदेश में
उजाला करते हैं , जिनके लिए समाज कृतज्ञ रहता है अतः हम सबको और भी परिश्रम कर देश का नाम रोशन करना चाहिए. गीता पाठ से स्पष्ट है
कि जीवन में ;अंत में कुछ भी नहीं)
निवृत्ति मार्ग भी होता
उचित
जीवन में अपनाते साधु
संत
जन सेवा में रहते लिप्त
जीवन होता (इस )लक्ष्य सहित
18/58
कर्तव्य कर्तव्य का
अंतरजान
भय अभय की स्थिति समझ
बंधनमुक्त की वास्तविकता
यथार्थ को ले अब तू समझ
18/59
स्थिति सात्विक बनती
है
जीवन का अनमोल रतन
भ्रम से जीना छोड़ दे
अपना
प्रेम से सदा करो जतन
18/60
धर्म-अधर्म का भेद न
जाने
अपने मुंह अपनी बातें
मन की उपज है जिसकी
तामस बुद्धि उसकी माने
18/61
व्याभि चारणी न मन हो
अपना
भगवत प्राप्त लक्ष्य
है जिसका
इंद्रीय लग्न भी साथ
चलें
18/62
राजसी बनी धारण शक्ति
फल इच्छा भी रहे बलवती
काम के बदले परिणाम
मिले
इच्छा मन में सबके रहती
18/63
धर्म अर्थ कामों में
रहता जो आसक्त
परिणाम मिले ना मन की
इच्छा
दुख को करता रहता व्यक्त
18/64
बुद्धि जिसकी भ्रष्ट
!
मन में भय को रखता वो
निद्रा दुख भी साथ चले
तन्मय हरदम रहता वो
18/65
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानीहै हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी
है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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