आज का गीता जीवन पथ
17वां अध्याय
Chapter 17*
__Choosing the right over the
pleasant is a sign of power_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 7वां अध्याय समर्पित है सभी वन
रक्षक व वन अधिकारियों के नाम; जिनकी मेहनत से देश -विदेश हरा -भरा रहता है ,और हम सभी को प्रेरित करते हैं)
ओम तत् सत शब्द है तीन
याद सदा तुम रखना
वेद ,ब्राह्मण, ज्ञान यज्ञ आदि
आधार बने इनकी रचना
17/51
ओम बना है पहला अक्षर
ईश्वर को संबोधित करता
शास्त्र विहित सब कार्यों में
काम शुरू इनसे होता
17/52
महिमा इनकी अपरंपार
उच्चारण इसका रोग- नाशक
ओम नाम का जपना है
सदा रहे यह फल लायक
17/53
तत् का मतलब ईश्वर का
भगवान का है यह सारा जहां
यज्ञों को मिलकर करना
स्वयं समर्पित होता यहां
17/54
कल्याण चाहता है मानव
दान क्रिया भी करता है
भला हो सबका इस जहां में
अभिलाषा सुख की करता है
17/55
अध्याय समाप्त
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी
है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
No comments:
Post a Comment