आज का गीता जीवन पथ
17वां अध्याय
Chapter 17*
__Choosing the right over the
pleasant is a sign of power_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 7वां अध्याय समर्पित है सभी वन
रक्षक व वन अधिकारियों के नाम; जिनकी मेहनत से देश -विदेश हरा -भरा रहता है ,और हम सभी को प्रेरित करते हैं)
उपकारी बनना यहां जरूरी
सात्विक मार्ग को अपनाना
यही मूल्य है दान दक्षिणा
विद्युत जन को भी देना
17/42
राजस भी हमें समझना है
फल की इच्छा होती प्रबल
कार्य विशेष को करता बाध्य
निबल बांटे ,चाहे सबल
17/43
कार्य विशेष जब पूरा करना
सहयोग सभी का आवश्यक
मिलजुल के हाथ बढ़ाते हैं
समय विशेष ;पर फलदायक
17/44
जो पात्र नहीं दान-दक्षिणा
कुपात्र पर करते हैं कल्याण
तामस उनकी प्रवृत्ति है
दान का होता है अपमान
17/45
देश काल व परिस्थिति
समझे बिना न कर ना दान
नुकसान तुम्हारा ही होगा
अपमान रहेगा तेरा मान
17/46
दभ भरते हैं जो
पूजा-पाठ भी करते
राजस लगता जैसे
सब कुछ वही हैं करते
17/47
यज्ञ मिटाता है अज्ञान
वातावरण भी साफ शुद्ध
रोगाणु विषाणु मरते हैं
वहां न रहता कोई अशुद्ध
17/48
जहां ना शास्त्र विहित है यज्ञ
अन्नदान ना होता है
मंत्रों का होना महज छलावा
बिन श्रद्धा ;जो होता है
17/49
ना दान दक्षिणा का हो अभाव
अमीर गरीब का ना हो भेद
प्रेम से सभी कार्य संपन्न
न मन में रहता कोई मतभेद
17/50
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी
है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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