Wednesday, 7 June 2017

594-----आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
17वां अध्याय 

Chapter 17*
__Choosing the right over the pleasant is a sign of power_

जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 7वां अध्याय समर्पित है सभी वन रक्षक व वन अधिकारियों के नाम; जिनकी मेहनत से देश -विदेश हरा -भरा रहता है ,और हम सभी को प्रेरित  करते हैं)


मन की प्रसन्नता शांत भाव
भगवन चिंतन उनका स्वभाव
मन का निग्रह;अंतःकरण शुद्ध
तप भी होता मन के भाव
17/26
फल की इच्छा कोसों दूर
तप ये सात्विक तीन है
 धोखा फरेब न इन में होता
ये इच्छाओं से हीन है
17/27
कुछ पाने की इच्छा होती!
 पूजा ,मन , तप, सत्कार भले
राजस तप वे करते हैं
अल्पकाल का चाहे फल मिले
17/28
पाखंड भाव उनमें विद् –मान
 स्वार्थ की वस् वे करते हैं
 पाना उनकी मंशा होती
 झोली अपनी भरते हैं
17/29
दान भी देना है पावन
समझो, सुपात्र को तुम
अभाव बने जिन चीजों का
देना दान उन्हीं को तुम
17/30
समय परिस्थिति देशकाल
स्थित हमको सत्य बताती
 उसी हिसाब से देना दान
मिटे गरीबी यह समझाती
17/31
कभी-कभी दवा व औषध
इनकी भी जरूरत पड़ती है
दिल खोल कर देना दान-दक्षिणा
 जान लोगों की ब चती है
17/32
शेष कल

मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा



No comments:

Post a Comment