यात्रा वृतांत
Gha/67/1900
एक प्रस्ताव आया सामने ,
टूर बच्चों का जाना है
आज की हालत देख के
फिर पीछे पछताना है
दिल मेरा घबराया
कुछ समझ में मेरी ना आया
देखेंगे और जाएंगे
एक बहाना; मैंने बनाया------1
पर बच्चे बच्चे होते हैं
दिल के सच्चे होते हैं
जिद की राह पकड़ ली
हम से हामी भर ली
दुनिया देखना ,मकसद उनका
साथ में रहना ,साथ सीखना उनका
लक्ष्य उनका था बड़ा
हमको भी था झुकना पड़ा
चित्रकूट या हरिद्वार
होगा बेड़ा सबका पार
खुशी चेहरे पे सबके आई
शामत चुपके मेरी आई
साथ भेजना 100 बच्चे
सोच-सोच दिल घबराया
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ऊपरवाले ध्यान में रखना
अपनी इज्जत तुम्हें बचाना
काम होगा तो विरोध जरूर
“सिचुएशन” करती मजबूर
बस ने अपनी राह को पकड़ा
पीछे देखा क्या है लफड़ा ?
जोर जोर से क्यों चिल्लाते ?
देखा वो तो नाचते गाते
बस्ती में मस्ती कितनी
यही झलक थी हमें समझनीं
बैठे-बैठे हम भी यार
सोचे बचपन की तकरार
सोच हमारी कहां ले आई?
दिल ने दिल से हमें बताया-------
पलक झपकते दिन बीते
भला !समय यह कैसे जीते?
मंजिल बदले ,बदले मुकाम
सुबह भी बीती ,आई शाम
संगम के तट पर था मेला
हो हल्ला उनका भी झेला
नेताओं का घर भी देखा
रहन सहन उनका देखा
चित्रकूट का हुआ फैसला
सब ने बदला ,माना फैसला
सुबह-सुबह हम पहुंचे
प्यारा चित्रकूट भी आया------
सुंदर -सुंदर सीन देखें
सुबह-सुबह जब हम पहुंचे
नगर धार्मिक शिक्षा देता
सबकी यह परीक्षा लेता
भाईचारा प्रेम से रहना !
देश में हमें नसीहत देता है
कुछ ना हमसे लेता है
बुंदेलो की यही सुनीं कहानी
सुनी थी हमने लड़ी जवानी
झांसी वाली अपनी रानी
देश की रक्षा की दीवानी
बच्चों ने भी ध्यान बtaया
टूर का मतलब समझ में आया--------
नई-नई चीजें सुनते हैं
कुछ ना कुछ वे कहते हैं
साथ साथ में खाते ,रहते
आभार हमारा भी करते
हमको ऐसा लगता
बार-बार ये मन करता
आ्लू बोरा जैसे हम
सांस फूलती निकले दम
सांस फूल गई चढ़ना पड़ता
उम्र से अपनी लड़ना पड़ता
हिम्मत हमने ना हारी
चित्रकूट की यात्रा प्यारी
दर्शन मिलते होते धन्य
काम छोड़के मैं आया ----
हंसते बच्चे याद दिलाते
अपने बचपन में ले जाते
जिद अपनी मम्मा से रखते
खाने की हम जिद करते
ऐसे अवसर आए रोज
डॉक्टर चाहे दे दे डबलडोज
वाद- बंधन ये तोड़े
देश दुनिया से हमको जोड़े
खर्च यहां सब करते
हंसते-हंसते चीज खरीदते
किसी का चूल्हा भी जलता
भूखे को खाना है मिलता
एक टूर है कितने फायदे
कभी किसी को नहीं सताया------
खुशियां बांटते हम हों शरीक
दूर ही लाता सबको करीब
सफल दूर था अपना
लगता जैसे सच हो सपना
दूर था सचमुच मस्त
गर्मी ने किया था त्रस्त
चाहे सब से पूछो
नहीं हौसले अपने अबभी पस्त
खुशियां मिलती देख के बच्चे
होते पूरे सपने सच्चे
अच्छी उनको गाइड मिले
देश तरक्की - राह चले
लौट के घर जब वापस चलते
विचार ये दिल में अपने समाया----
(अर्चना व राज)
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