Monday, 15 May 2017

577-वास्तविकता (HindiPoem-x/51/1313)

वास्तविकता
 (HindiPoem-x/51/1313)
दरकार न्याय की सबको है
 गुहार लगाते जगह-जगह
उम्मीद जगाती न्याय व्यवस्था
बैठे नेता-अफसर जगह जगह
बड़े प्रेम से सुनते हैं
मीठी वाणी भी बोले
सभी समस्या उनके सामने
पर अपनी भाषा में तो लें
 चिंता की कोई बात नहीं
हल जल्दी निकलेगा
 जो लिखता नीचे वाला
मान्य वही हर जगह चलेगा
नीचे की पिक्चर है गंदी
ओछी छोटी मानसिकता
 ओछी बातों वादों में उलझे
यही आज की वास्तविकता
केस कचहरी  कोर्ट चलें
समय भी  लगता जाता है
दे र हुई न्याय न मिलता
यही हकीकत बयां करता है
बेहतर है हम शांति रखें
अपने मसले खुद सुलझाएं
सारी विपदा दुखड़े अपने
भला हम किनसे कहने जाएं

(अर्चना राज)

No comments:

Post a Comment