Saturday, 20 May 2017

578--- मु स्काहट

मु स्काहट

Gha/67/1890
लंबे चौड़े भाषण
नई नई रोज की बातें
रोज नसीहत मिलती है
ये करना है
वो करना है
रोज हमें;
सुननी पड़ती हैं --------
 बिन बोले कुछ लोग जहां में
 ऐसा कुछ कह जाते हैं
मीठी -मीठी उनकी यादें
यादों में (हम) रह जाते हैं
उन्है भूलना मुश्किल है
यादें उनकी ;
तंग करती है------- 
रोज नसीहत मिलती है
आज सुबह जब घर से आए
किसी ने देखा ,मु स्काया
जहां के सारे गम का बोझ
पलक झपकते कहां गया ?
खुशी कहां से इतनी आई
अब तो ;
चिंता रहती है------- 
रोज नसीहत मिलती है

 पढ़ना लिखना दूर की बात,
लड़ना ,झगड़ना छोड़ो
 खुशी मिलेगी इतनी यहां
 मु स्काहट से नाता जोड़ो
खुशियों को अब गले लगाओ
दुनिया प्यार से ;
चलती है-----
 रोज नसीहत मिलती है
-

(अर्चना राज)

No comments:

Post a Comment