मु स्काहट
Gha/67/1890
लंबे चौड़े भाषण
नई नई रोज की बातें
रोज नसीहत मिलती है
ये करना है
वो करना है
रोज हमें;
सुननी पड़ती हैं --------
बिन बोले कुछ लोग जहां में
ऐसा कुछ कह जाते हैं
मीठी -मीठी उनकी यादें
यादों में (हम) रह जाते हैं
उन्है भूलना मुश्किल है
यादें उनकी ;
तंग करती है-------
रोज नसीहत मिलती है
आज सुबह जब घर से आए
किसी ने देखा ,मु स्काया
जहां के सारे गम का बोझ
पलक झपकते “कहां गया” ?
खुशी कहां से इतनी आई
अब तो ;
चिंता रहती है-------
रोज नसीहत मिलती है
पढ़ना लिखना दूर की बात,
लड़ना ,झगड़ना छोड़ो
खुशी मिलेगी इतनी यहां
मु स्काहट से नाता जोड़ो
खुशियों को अब गले लगाओ
दुनिया प्यार से ;
चलती है-----
रोज नसीहत मिलती है
-
(अर्चना व राज)
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