Sunday, 23 April 2017

566---आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
चौदहवां अध्याय 

*Chapter 14*
_Live a lifestyle that matches your vision_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के विद्यार्थियों के नाम ; इत नी महनत और परेशानी के मध्य केवल अप ने लक्ष्य को प्राप्त करते  है, बल्कि अपने सपनों को साकार रूप देते हुये देश की तरक्की में अटूट योगदान देते हैं)

ध्यान तेरा आवश्यक, अर्जुन !,
तुझे बताना मुझे जरूरी
ज्ञान जहां में (जो )अति उत्तम
उससे बढ़ा ना तू दूरी
14/1
दुनिया में जो सत्पुरूष
परम मोक्ष को प्राप्त हुये,
ज्ञान बना उनका माध्यम
सुलभ रास्ता; मुक्त हुये
14/2
जीवन मरण का चक्र ,
उन के लिए थम जाता है
पुनःप्राप्त होते वे ,
सदगति उऩको मिलता है
14/3
जड़ चेतन का मधुर समागम ,
जीवन का मर्म यहीं छिपा ,
जड़ को चेतन करता मैं ,
सत्य जहां में यहीं दिखा
14/4
प्रकृति है माता सब जीवों की ,
जीव धरा पे विचरण करता,
धात्री है प्रकृति सबकी ,
बीज को मैं रोपित करता
14/5
माता तुल्य प्रकृति को समझो,
पिता समान तुम मुझको मानो
मा्त -पिता की सन्तानें
धरा पे तुम सबको मानो
14/6
व्याप्त प्रकृति में ,पार्थ !,
सत ,रज ,तम गुण
मोहित होता जीव इन्हीं में ,
पनपें इनसे सारे अवगुण
14/7
 शेष कल
 मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा



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