Sunday, 2 April 2017

533---आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
तेरहवां अध्याय 
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश engineers and technocrats के नाम ; इतना जोखिम और परेशानी  के मध्य अप नी महनत परिश्रम के प्रतिफल केवल अनगिनत प्रोजेक्ट्स को पूरर्ण करते   रहते है,बल्कि ,हम उनकी सेवाओ से प्रेरित गौरवान्वित भी होते हैं)


पंच महाभूत,दस इन्द्रीय ,
मन अपना एक है
शब्द स्पर्श रूप रस गन्ध (इन्द्रीयwork )
सबकी भाषा एक है
13/8
इच्छा सुख दुख,द्वेष भाव,
 धृत चेतना आनन्द
यही विकारों की जननी !
चखे जीव जैसे कन्द
13/9
ए कान्त प्रिय , दुष्ट जनों से दूर
आत्मज्ञान में नित्य स्थित,
 परम तत्व में लीन रहे
ज्ञान यही ;उसकी मनः स्थित:
13/10
ज्ञान को समझो,ज्ञानको जानें,
 संसार रचा है ईश्वर
सब प्राणी का वही नियन्ता
पा्लक पोषक वह परमेश्वर!
13/11
अज्ञानी करते भेद भाव,
प्राणीबाटें अपने हिसाब
समुदाव में उनके जो शामिल
 मित्रता उनसे ?यही जबाव
13/12
क्या सत है क्या असत ?
सोच हमारी से वो दूर
परम ब्रृह्म वह अनादिकाल है
प्रकाश बिखेरे उसका नूर
13/13
जब जानोगे तब समझोगे ,पार्थ !
खुशी से झोली भर जायेगी
परमानन्द से आंलिगन करना
किस्मत जब परिवर्तन लायेगी
13/14
शेष कल


मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा

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