आज का गीता जीवन पथ
तेरहवां अध्याय
*Chapter 13*
_Detach from Maya & attach to
Divine_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के engineers and technocrats के नाम ; इतना जोखिम और परेशानी के मध्य अप नी महनत व परिश्रम के प्रतिफल न केवल अनगिनत प्रोजेक्ट्स को पूरर्ण करते रहते है,बल्कि ,हम उनकी सेवाओ से प्रेरित व गौरवान्वित भी होते हैं)
बात यही और सच!
जीवन देने वाले तुम हो
शरीर मेरा तेरा नियन्त्रण
सासें देने वाले तुम हो
13/91
गुणादि देह में तुमने दिये
पृकट जगत में होते हैं
सीमित मिली मुझे स्वतन्त्रता
आश्चर्य सभी करते हैं
13/92
"अर्जुन मोटे शब्दों में
इस बात को तुम जानो
आलोकित करता जगत में सूर्य
कभी ना हिस्सा मानों
13/93
सत्य यही है अर्जुन
रूप है सूरज जैसा
हिस्सा किसी का ना बनता
जग
आलोकित उस के जैसा
13/94
सम्पूर्ण क्षेत्र पे दृष्टि डालो ,
तुम पाओगे क्षेत्र आलोकित
आत्मा परमात्मा का सम्पूर्ण कार्य
होता इनसे जग पृज्जलित
13/95
क्षेत्र जगत का क्षणभंगुर
माया मोह का खेल यहां
नाशवान ,नष्टप्राप्य !
सत्य समाया इसी जहां
13/96
क्षेत्र ज्ञ जानो अविनाशी
यात्रा करता रहता है
पडाव बदलते जीवन में
अपनी गति से चलता है
13/97
जिसने भेद को जान लिया
समझ लिया वो जग की माया
परम तत्व में लीन वो रहता
पल दो पल की मोह की काया
13/98
प्राप्त वो होता परमात्मा को
मिलन भी उनसे होता है
जगत है माया मोह की नगरी
यही हकीकत कहता है"
13/99
अध्याय समाप्त
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी
है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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