Friday 14 April 2017

562--आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ
तेरहवां अध्याय 

*Chapter 13*
_Detach from Maya & attach to Divine_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(समर्पित है देश के engineers and technocrats के नाम ; इतना जोखिम और परेशानी के मध्य अप नी महनत परिश्रम के प्रतिफल केवल अनगिनत प्रोजेक्ट्स को पूरर्ण करते रहते है,बल्कि ,हम उनकी सेवाओ से प्रेरित गौरवान्वित भी होते हैं)

बोध रूप वह सत्य जगत का ,
वही तो है जानने योग्य ,
तत्व ज्ञान से मिलता जो,
 ह्दय स्थित वो मानने योग्य
13/69
परम तत्व को समझे ज्ञानी,
 मार्ग प्रेम का चुनतेहै,
ज्ञान, कर्म ,योग्य मार्ग,
 ध्यान लगा के चलते हैं
13/70
जिस रूप में देखो !
दर्शन उसके मिलते हैं
ध्यान लगाना ,ह्दय में पाना
निकट उसी को मिल ते हैं
13/71
श्रवण, परायाण, पुरुष जगत में !
औरो से वे सुनते हैं ,
जो कहते ,वे करते हैं
ह्दय में धारण करते हैं
13/72
परम तत्व को जिसने जाना ,
मर्म जीवन का वो जाने,
 जगत हैं क्षण भंगुर सत्य ,!
यही है वो जाने
13/73
सार जगत का शून्य ,!
ये संसार है माया लोक ,
जीवन है अल्पकाल का
छाया जगत में केवल शोक
13/74
रूप आत्मा परमात्मा उप द्रष्य अनुगन्ता , !
वही जगत का पालनहारी हैं !
ईश्वर भोक्ता शुद्ध सच्चिदानन्द!
 दुनिया जिससे हारी है
13/75
शेष कल


मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा

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