Saturday, 15 April 2017

563----आज का गीता जीवन पथ

आज का गीता जीवन पथ

तेरहवां अध्याय 

*Chapter 13*
_Detach from Maya & attach to Divine_
जय श्री कृष्णा.

सबका भला हो !
(समर्पित है देश के engineers and technocrats के नाम ; इतना जोखिम और परेशानी के मध्य अप नी महनत परिश्रम के प्रतिफल केवल अनगिनत प्रोजेक्ट्स को पूरर्ण करते रहते है,बल्कि ,हम उनकी सेवाओ से प्रेरित गौरवान्वित भी होते हैं)


जीवन में कहाँ चैन रखा ?
भटक रहे हैं. दर -2 सब !
माया लोक का है जंजाल
चैन मिलेगा हमको कब?
13/76
जीवन मरण यहीं बंधा है
 खेल है बड़ा अजीब !
निश्चित नियम जहां में मिलते
 जड़ भी होते ,देखे ,सजी
13/77
दिल जिनका है साफ स्वच्छ
दिल से  उपासना करते है
भवसागर में नहीं भटकते
प्रभु भी उन की सुनते है
13/78
क्षेत्र  क्षेत्रक  का  संयोग मा त्र
उत्पन्न सभी को उनसे मान
सृज़न- विनाश का क्रम चलता
सत्य इसी को (तू)अर्जुन जान
13/79
जग में अल्पकाल का फेरा है
कभी कोई स्थायी
नाशवान ;सब नश्ट प्राप्य
यही जगत की सच्चाई
13/80
ध्यानी ध्यान लगाता है
समभाव वो दिल में रखताहै
नाशवान ना ईश्वर है
सच को वो समझता है
13/81
ज्ञानी जीवन सार को समझे
 दृष्टि उसी की सम है
ना ही शोक मरने पर,
 ना ही दिल में गम है
13/82

शेष कल


मेरी विनती

कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद खुद समाप्त हो जायेगा

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