001
002
003
004
005
मोर बोरिश-------जुगाड
(Hindi Poem-I/050/0000502)
Note----कृपया फोटो पहले देखें.
जब भी होता काम बिगाड़, जल्दी सोचो कोई जुगाड़ II
001
लगे नारियल इतने ऊंचे,
सारे प्यासे खड़े है नीचे:,
पानी भी तो पास नहीं, पीने की. कोई आस नहीं,
पेड़ बने अपनी दीवार,
सीढ़ी बनते. हम सब यार ,
यही हमारी सोच पुरानी
, हमसे इसमें
दुनिया हार- मानी
जब भी देखो !, होता काम
बिगाड़, अरे ! जल्दी सोचो कोई जुगाड़ I1I
002
ऑफिस जाना जल्दी हम
को, समय से ना ----गाड़ी मिलती हम को ,
एक है बायक सोचो यार,
जल्दी कुछ करो विचार……?,
वाहन पुख्ता बड़ा पुराना ,बैठो----- निभाये याराना,
हाथ दिखाता पुलिस का भाई ,बची जगह ना मेरे भाई,
अब की बार मेरे यार , करना होगा इन्तजार ,
आती हो कोई जुगाड़,
बाबले ! मेरा ना तू कुरता फाड़
जब भी देखो !, होता काम
बिगाड़, अरे ! जल्दी सोचो कोई जुगाड़ I2I
003
प्यार के दीवाने हैं
,सबको अपना माने हैं ,
पहले खिलाते प्यार
में हम ,प्यार लुटाते बाद में हम,
इंशा क्या पशु पक्षी भी, दानव दैत्य नर-भक्षी भी,
004
धोखा
देखो देना नहीं ---?,छठी का दूध पिलाऊं वही,
प्यार में देते हम
लताड़, कुछ गिरते घड़ाम ,कुछ खाते पछाड़
जब भी देखो होता काम
बिगाड़, अरे ! जल्दी सोचो कोई जुगाड़ I3I
005
जहां भी जाते रहते
हम, भगवान देखते बहीं , से हम!
जब मन हो. चंगा ,मानो
कठौती में गंगा,
इसीलिए अपना विश्वास ,जुगाड़ जलाती सबकी आस ,
काम बिगड़ते. सुनते चिघांड ,रहती सबसे यही अगाड
जब भी देखो होता काम
बिगाड़, अरे ! जल्दी सोचो कोई जुगाड़ I4I
( अर्चना & राज)
No comments:
Post a Comment