Sunday, 4 October 2015

0000251आज का गीता पाठ

आज का गीता पाठ

(आत्मा का वर्णन)

असत वस्तु की सत्ता ना,
सत का अभाव  नहीं रहता,
 ज्ञानवान वे लोग यहाँ ,
मर्म तत्व मान में रहता I103I

नाश रहित तू उसको जान,
 जगत की माया जिनसे है ,
उस अविनाशी की माया है ,
सब कुछ रहता उनसे है   I104I

नाशवान जगत है मिथ्या ,
आते जाते क्रम चलता,
कौन सदा यहां रहता है ,
(सब तो) पल-2 मिटता रहता  I105I

अजर, अमर, अविनाशी ,आत्मा ,
भूल करे, जो समझे मरता ,
 ना ये मरता, ना ही मारता ,
रूप बदलता, चलता रहताI106I

अजन्मा ,नित्य,  पुरातन, सनातन,
 अदभुत ,अजीब, गजब कहानी ,
मौत रहती कौसों दूर,
 रहस्य भरी बस यही कहानी I107I

वस्त्र पुराना हो जाता, 
नये  को हम सब धाते हैं,
 आत्मा त्यागे. मृत शरीर ,
नवजीवन हम पाते हैंI108I

पानी पे तलवार चलाना ,
पानी को काट नहीं सके ,
शस्त्रों से ! परे आत्मा ,
आग इसे जला न सकेI109I

जल की गलन. से दूर ,
वायु सुखा नहीं सकती ,
अच्छेद्य, अदाह्य ,अक्लेद्य ,अशोष्य ,
नित्य अचल स्थिर रहती I110I

अव्यक्त ,अचिन्त्य, विकार-रहित ,
जीवन इसका सोच से परे ,
शोक के काबिल नहीं आत्मा ,
कहीं. कभी ना ये मरे I111I

लेती जन्म या मृत्यु प्राप्य,
क्रम इसका चलता रहता,
शोक के योग्य नहीं आत्मा.,
जीवन इसका सदा ही रहता I112I

 


जन्म मिला है जिसको ,
मृत्यु मिलन होना निशिचत, 
मृत्यु मिली है जिसको ,
जीवन मिलना उसका निशिचत I113I

जन्म से पहले नहीं प्रगट, 
मृत्युअप्रगट कर देती है ,
जीवन रहता प्रगट यहां ,
आश्चर्य दिलों में भर देती हैI114I
ज्ञानी समझे इस का मर्म ,
अज्ञानी वने हंसी का पात्र ,
आश्चर्य भरा है तत्वों में ,
क्या अर्थ निकालें मात्र?115I

अवध्य ,आत्मा ,सर्वव्यापी ,
सनातन है प्रवित्त इसकी ,
भय से क्या लेना देना ,
अदभुत ,गजब प्रकृति इस कीI116I

शेष कल

 

निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I

कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II


(अर्चना  राज)

 

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