Saturday, 25 November 2017

727---आज का गीता पाठ--9

‘’जब-2 अत्याचार बढ़े,
अधर्म ने जगह बनाई अपनी ,
दाता  भेजा योद्धा तुम जैसे ,
मिटा अधर्म जगह बना अपनी
2/53

माया मोह के इस जगत में,

न तेरा कोई, न तुझ से बनता है,

क्षण भंगुर जीवन में तू,

क्यों इठलाता फिरता है

2/53

आज जो तेरे हैं !

भ्रम तूने पाल रखा,

कल को  दूर-2 तक,

ना बनेगा तेरा कोई सखा

2/54

वे भी चाहें तब भी,

कुछ कर नहीं सकते ,

सदा  को इस दुनिया में,

वे भी जुड़ नहीं सकटे 

2/55

यही रहस्य इस दुनिया में,

समझ से बाहर रहता है ,

तुझको यही समझना होगा,

जो दाता तुझसे कहता है

2/56

 

कर्म किया किया है जिसने जैसा,

फल उसका निर्धारित है,

 

कल का कर्म आज का भाग्य,

नियम यही संचालित है

2/57

 (बीता हुआ- कल -- कृपया ध्यान दें कर्म के बाद भाग्य है)

 

 

जब-2  धर्म की होगी हानि,

अधर्म बढ़ाता अत्याचार ,

तय सीमा से आगे, अर्जुन

न बढ़ पायेगा अत्याचार

2/58

इसे थामने की ताकत ,

तुम जैसे योद्धा करते हैं ,

तेरी ताकत के आगे , अर्जुन

नतमस्तक सब होते हैं  “””’’


2/59
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)

शेष कल

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