Friday, 24 November 2017

726----आज का गीता पाठ-8

द्वितीय अध्याय--समर्पित है--मीठी - यादो के लिये----
माँताजी , भाई डा० राजीव कुमार सिंह,,मित्र-एस० के सिह्
and all those known or unknown ,Who left for heaven with sweet memories left behind, May Lord Krishna let their soul rest in peace with heavenly bliss!)

“कौन हो तुम ! पार्थ,
क्या कभी स्वयं को समझा,
जीवन मिला है जीने को,
क्या यही अभी तक बूझा
2/48
कर्त्ता नहीं हो जगत के तुम !,
जो चाहो कर सकते,
निमित्त मात्र उस कर्त्ता के,
वो चाहे तब तक हम जीते
2/49
सत्य मार्ग है दुर्गम भारी ,
सत्य विश्व का है आधार ,
सत्य मार्ग पे चलना तुमको ,
यही है जीवन का सार
2/50
लोग करोड़ों मरते प्रतिदिन,
जन्म पुनः वे पाते हैं
हजार साल का इन्तजार,
योद्धा तुम जैसे आते हैं
2/51

धर्म अधर्म का महायुद्ध ,
जीत धर्म की होनी है,
धर्म की रक्षा तुमको करनी ,
लिखा यही, अब होनी है

2/52

शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)

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