आज का गीता जीवन पथ
18वां अध्याय
*Chapter 18*
_Let Go, Lets move to union with God_
जय श्री कृष्णा.
सबका भला हो !
(1 8 वां अध्याय समर्पित है सभी शिक्षकों के नाम; जिनकी मेहनत से देश-विदेश में बच्चों का जीवन न केवल ज्ञानवान व समृद्धशाली बनता है बल्कि स्वयं को मोमबत्ती की तरह जला कर देश- विदेश में उजाला करते हैं , जिनके लिए समाज कृतज्ञ रहता है अतः हम सबको और भी परिश्रम कर देश का नाम रोशन करना चाहिए. गीता पाठ से स्पष्ट है कि जीवन में ;अंत में कुछ भी नहीं)
ध्यान बंटा धृतराष्ट्र का
अधीर हुए और पूछा उसने
“आगे का हाल बताओ ,संजय
क्या बात मान ली अर्जुन ने
18/131
डर है कृष्ण से हमको
बिना लड़े अर्जुन सब देता
प्रेम सभी से वो करता है
खून खराबा नहीं चाहता
18/132
नहीं चाहिए अर्जुन को कुछ
वह तो भोला-भाला है
नाज उसी पर हम सबको
सबका वो रखवाला है”
18/133
बीच में टोका संजय ने
“राजन ,प्रेम की गंगा बहने दो
बात तुम्हारी सभी मानते
अब ना सबको लड़ने दो
18/134
धरा किसी की नहीं बपौती
माया मोह का है भ्रमजाल
आंख खुली ,तो सब अच्छा है
वरना सारा मायाजाल
18/135
आप अगर चाहोगे तो
युद्ध अभी भी टल जाएगा
नाम अमर तेरा होगा
दे श भी
तेरा गुण गाएगा
18/136
प्रेम की गंगा पावन है
प्रेम से सबको रहने दो
प्रेम बढ़ाता भाईचारा
अब ना इनको लड़ने दो
18/137
“संजय !मैं भी चाहूं
युद्ध न हो ,टल जाए
हठधर्मी है पुत्र मेरा
हल भी कोई उससे आए”
18/138
“जिस दिन आपने चाह लिया
हुकुम राजा का सिर माथे
पुत्र मोह को त्यागो ,राजन
एक तीर से सब साधें
18/139
फकीर की लकीर रह जाएगी
हाथ से मौका ये जाएगा
रोने चिल्लाने से भी फिर
कुछ बदल यहां ना पायेगा”
18/140
“ जीत मिलेगी दुर्योधन को
मन मेरा भी कहता है
जब युद्ध क्षेत्र में आए हैं
जीत दुर्योधन चाहता है
18/141
आगे का वृत्तांत सुना तू
क्या कहा कृष्ण ने अर्जुन से
लड़ने को तैयार हुआ क्या
या दूर चला लड़ने से
18/142
“कृष्ण ने कहा अर्जुन से
अब तो जीवन समझो, संशय छोड़ो
वस्तु प्रेम ना जीवन है
ममत्व -प्रेम से नाता जोड़ो
18/143
जग की ये सच्चाई है
जो आता, वह जाता है
त्याग दिया संशय को जिसने
करके कुछ वो जाता है
18/144
ममत्व प्रेम से जीवन हो !
मोह माया ये क्षणभंगुर है
क्षणभर का जीवन है
क्षणभर खिलता उपवन है”
18/145
शेष कल
मेरी विनती
कृपा तेरी काफी है ,प्रत्यक्ष प्रमाण मैं देता
जब-2 विपदा ने घेरा ,गिर ने कभी ना तू देता
साथ मेरे जो पाठ है करते ,कृपा बरसते रखना तू
हर विपदा से उन्है बचाना ,बस ध्यान में रखना कृष्ना तू
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से जुड़े I
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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