Friday, 6 November 2015

0000277-पुरस्कार (लौट + आना ) हाय ! रब्बा इसी बहाने जाने जाते !(Hindi Poem-K/039/0000591)


पुरस्कार (लौट + आना )
हाय ! रब्बा इसी बहाने जाने जाते !


अरे भईये
 काश! हम भी चमचा होते ,
बिना पढ़े हम पास होते,
 पुरूस्कार की राह ना देखते,
 आशा प्रत्याशा में  लिखते ,
वो तो घर पे चल के आता,
 पढ़ने से ना होता नाता,
 लिखना रहता  दूर की बात,
 पांव पसारे कटती रात,
 आते जाते चेहरा दिखाते,
 भईया चच्चा कहते रहते
काश! हम भी चमचा होते ,
हाय ! रब्बा इसी बहाने जाने जाते !----1----
टीवी दिखाता  नई बहस,
सब को डुबाते, लेते रस,
 ऐसे चेहरे नाम सुने ना,
काम को उनके जाने ना,
 लिखी किताब भी पाता ना,
 कश्यप ! भारत पैदा ना ,
नाम रहा जेहन से दूर ,
किया नहीं कोई मजबूर,
  सुन-2 के हमने जाना ,
चेहरा पहली बार पहचाना,
 गंगा बहती उत्तर भारत,
 हम बोलेगें पश्चिम भारत,
 टीवी वाले आयेंगे ,
हम को खूब पढ़ायेगे,
 ये बयान तो नई खोज,
 नाम देखेगें अपना रोज ,
जनता जब गरियायेगी,
 सहनशीलता जायेगी,
 मोदी जी चुप क्यों ?,
 हमरी इज्जत जाये क्यों,
कर के उल्टे-2 काम,
 होता अपना खूब नाम ,
चमचा बन के भाग्य चमकाते
हाय ! रब्बा इसी बहाने जाने जाते !2------!

( अर्चना & राज)

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