यज्ञ से होते दे व प्रसन्न,
धरा भी होती साफ शुद्ध ,
बिन मांगे कृपा बरसे ,
भोग करेगा सुख वृद्धि ,
(3/17)
लेकिन जिसने भोगों से,
रखा देवों को दूर,
महामूर्ख वह अज्ञानी,
होता सदा कृपा से दूर
(3/18)
यज्ञो की बाद ! हे अर्जुन,
अन्न सदा बचता है ,
प्रेम से ग्रहण करता कोई ,
पापों से मुक्ति पाता है
(3/19)
जो रहता है इनसे दूर !हे अर्जुन,
अन्न पोषण का माध्यम ,
उससे बड़ा ना पापी कोई ,
बनता भागी पाप का उद्गम ,
(3/20)
अन्न जीवन का माध्यम,
अन्न प्राणी का जीवन आधार
वृष्टि जरूरी अन्न उगे
यही सहायक
वृष्टि बौछार
(3/21)
यज्ञ प्रतीक उस
अविनाशी का,
सृष्टि का
रहस्य साथ छिपा
यज्ञ में प्रतिष्ठित
परम तत्व
बरसे उसकी अनुपम
कृपा,
(3/22)
यज्ञ ; विहित कर्मों से ,
पैदा होता इस जहां में ,
जन्म वेद से होता है ,
प्रभु प्रदत्त किया इस जहां में
(3/23)
सृष्टि चक्र
चलता रहता
सदा रहे
अनुकूल परंपरा ,
कर्तव्य विमुख होते
हैं जो
पापायु बन
;अशोभित होती धरा
(3/24)
शेष कल
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
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