Saturday 26 September 2015

0000249-----आज का भजन (Hindi Poem I/020/0000475)

आज का भजन
(Hindi Poem I/020/0000475)
दिल में कष्ट छिपाये बैठी ,
मिला ना कोई सुनने वाला,
जो भी आया ,मुस्काया ,
मिला ना कोई रखवाला,
मैं विनती तुमसे करतीं,
इनको मैं अर्पित करतीं
तेरे सिवाय न सुनने वाला,
दिल में भाव यही रखती,
अब तो, कृष्णमुरारी
हे जगत के पालनहारी, त्रिपुरारी
घेरी विपदा मुझको भारी I1I
बोलूं तो भी मुश्किल है ,
न बोलूं तो भी मुश्किल है ,
काम कंरू या छोडू इसको,
व्रतःरक्खूं या तोडू इसको ,
जिसको अपना दिल से चाहा,
वही साथ न दे पाया,
मेरी गलती, उसकी गलती ,
किसकी जहां में कब चलती,
भ्रम इतने ना हल निकले,
सुनती कहती दिल दहले,
तू ही मार्ग दिखाना अब,
अब तो, कृष्णमुरारी
हे जगत के पालनहारी, त्रिपुरारी
घेरी विपदा मुझको भारी I1I
ज्यादा बोलू पागल कहते ,
कहते मेरे बोल घायल करते ,
उठते गिरते चलते संभलते ,
फिर भी दोषारोपण करते,
क्या सुनना क्या कहना है,
मै हंू बस सहना है ,
कम ही मिलते मुझको समझते,
पर वे हल न दे पाते ,
अब तो आस बंधी तुमसे ,
छिपा नहीं अब कुछ भी तुम से ,
तेरा फैसला बाकी है
अब तो, कृष्णमुरारी
हे जगत के पालनहारी, त्रिपुरारी
घेरी विपदा मुझको भारी I2I
जगत है माया ,
भ्रम है छाया,
पानी -प्यास मृग दौड़े ,
सबकुछ अपना पीछे छोड़े ,
जीवन भटके इसी प्यास में,
अच्छा होगा इसी आस में,
तेरा फैसला चौकाता,
हमें नतीजा उलझाता ,
जीवन चलता तेरी राह में,
मेरा जीवन कटता इसी आस में,
चाहत तेरे ऊपर छोड़ी ,
अब तो, कृष्णमुरारी
हे जगत के पालनहारी, त्रिपुरारी
घेरी विपदा मुझको भारी I3I
(अर्चना & राज)
Rbs Chauhan's photo.


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