Thursday, 25 June 2015

000235-----Gita in Hindi Poetry(essence)--1

आंओ कृष्णा सें सीखें 

------गीता पाठ-----

                            पृष्ठ भूमि का सरल प्रस्तुतीकरण

“ पैदल चलती सेना,

 घुड़सवार थे चहुँ ओर I

रथो पे बैठे महायोद्धा,

 बढ़ते हाथी मचाते शोर II1II

भयाक्रान्त थे लोग सभी

बैठा-2  दिल भी था I

कल क्या होंगा ;सोच सभी,

दुःखी्-2 सा मि ल् ता  था II2II
द्रश्य विहग़म ? शोर अजीब?
लहू की प्यासी सेना थी I
दो इंच जमीं की खातिर,

 आमने सामने सेना थीII3II

 विश्वासभरोसा सत्य न्याय

दाब पे लगे, सभी सुकर्म I

ताज मिलेगा इनको,

 या विजयी होगे सभी कुकर्म II4II

ताल मेल असम्भव है,

सत्य झूठ के बीच की खाई I

कटती लाशों को देखा,

 सदियों से ये चली लड़ाईII5II

आज दौर ये फिर आया,

अंहकार भी साथ दिया,I

 झूठ ने ठोका दावा अपना ,

जड़े सभी की हिला दिया II6II

एक तरफ़ दुर्योधन, दुःशासन

सेना उ न की विशाल श्रेष्ठ I

अश्वथामा कर्ण सरीखे,

सङ्ग थे पितामह कुल श्रेष्ठ II7II

अप् नौ को देखा खून पिपासु,

अर्जुन का मन् वा डोल गया I

नही चाहिए राज सिङ्गाशन ,

 दिल भी  उस् का बोल गया II8II

घबराया, सिर पीटे, रोता हुआ ,

अर्जुन हुआ अधीर I

उपाय ना सुझा उस् को कोई,

तर्कश मे रख दिये तीर II9II

अप् नौ की लाशो पे राज महल,

नही चाहिए, अर्जुन बोला I

डर के मारे कॉंप उठा,

दिल बैठा, मन उस्  बोला II10II

 अर्न्तमन का अर्न्तद्वन्द्ध ,

 रहा नतीजा सिफर, शून्य I

अपने मुझको जान से प्यारे ,

चेतना करती उसको शून्य I11I

माधव ने अर्जुन को देखा,

मुस्काते मुस्काते -सुना सभी I

अर्जुन होगें इस हाल में,

 देखे माधव नहीं कभी I12I

बार- बार प्रश्नों की बौछार,

 घबराये अर्जुन करते I

क्यों, क्या, किसको, कैसे ,

कहते-2 वे न थकते I13I

माधव ने दी खुली छूट,

जो कहना तुम कहते रहो I

शेष बचे न प्रश्न कोई,

 मन करता जब तक कहो I14I

अर्जुन भोलाभाला इंशा,
जीवन के के मर्म का मतलब I 
सोच समझ की परिधि से दूर ,
ही रहता इन सब का सबव II15II
इशान की कमजोरी क्या ? 
पदार्थ प्राप्ति उसका मकसद,
दिन रात लगा रहता है ,
नहीं समझता अपनी हद II16II
ये मेरा है ये तेरा है,
जीवन कहता यही कहानी ,
इक हवा का झोका है ,
सो जाता नींद सुहानी II17II
आपाधापी मारकाट, अर्जुन !
नियम बनाता अपनी खातिर,
सत्य मिटाना उसकी फितरत ,
बन जाता स्वयं ही शातिर II18II
(Unable to bear with truth 
and hence goes astray)

दुनिया के इस रंगमच को,
पालन - निर्देशन देता है भगवान I
अपना रोल निभाता तब तक ,
जब तक चाहता है भगवान I19I
सहने की शक्ति की सीमा,
 नियम शाश्वत चलता है I
झूठ कभी ना पनप सका,
 संग सत्य के चलता है  I20I
माया मोह की गजब दास्तां ,
भ्रमित है इस में दुनिया सारी ,
मेरा है ,ये मेरा है बस ,
मची इसी की मारामारी  I21I

 झूठ कभी ना पनप सका,

 सत्य की जीत सदा रही,
 सदियों से हम सुनते आये
यही दास्तां सबने कही I22I

माधव जाने यही व्यथा,
 अर्जुन कहते बार -2,
 मुझे यहाँ से जाने दो,
 होने दो सपने तार-तार   I23I
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना

, क्या देना I

कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस 

अपनी लेना II"


(अर्चना  राज)


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