महापुरुष इस विश्व में ,
जनता से रहता दूर ,
फर्क नहीं सोच में ,
कर्म करे या रहे वो दूर
(3/33)
समझो
इस
रहस्य
को,
अर्जुन !,,
नहीं
बना
मैं
कर्मकार्य से ,
जो
चाहूं
मिल
जाएगा,
पर मै भी जीता.कर्मकार्य से
(3/34)
स्वार्थ
भाव से काफी
ऊपर,
कर्मकरें या रहे दूर ,
लेना-देना नहीं बास्ता
महापुरुष रहता है दूर
(3/35)
आसक्ति पाल ना ,अर्जुन तू ,
कर्म का संपादन कर ,
परम तत्व से होता मिलन,
सदा मोह से रहता दूर ,
(3/36)
ज्ञानी जानी , जनकादि
कर्म दिलाया परम सिद्धि ,
जनहित में तू कर्म कर
तुझे संवा रे तेरी बुद्धि
(3/37)
त्यागो
मोह को अर्जुन तुम ,
जनहित का कल्याण करो
गांडीव उठा तू दिशा बदल,
विश्व का तुम उद्धार करो,
(3/38)
कर्म बना जरूरी सबको ,
इसको करना आवश्यक ,
जनहित है सर्वोपरि ,
वरना होगा मुझ पर शक
(3/39)
जीवन उनका संकट में ,
विनाश धरा का होगा ,
संकीर्णता का प्रमाण मिले ना,
अलग कर्म ना,मुझसे होगा.
शेष कल
निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I
कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II
(अर्चना व राज)
नोट- जो लोग जातिवाद कहते है हैं,उनके लिए जरूरी है कि वे कृष्णा धारा से juड़ेI
कृष्णा ने मानव कल्याण की ही बात की हैं जातिवाद खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा
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