Friday, 28 August 2015

000245----The Gita- Hindi Poem-Part-2

कौन हो तुम ! पार्थ,
 क्या कभी स्वयं को समझा,
 जीवन मिला है जीने को,
 क्या यही अभी तक बूझा I24I
 कर्त्ता नहीं हो जगत के तुम !,
 जो चाहो कर सकते,
 निमित्त मात्र उस कर्त्ता के,
 वो चाहे तबतक हम जीते I25I
 सत्य मार्ग है दुर्गम भारी ,
सत्य विश्व का है आधार ,
सत्य मार्ग पे चलना तुमको ,
यही है जीवन का सार I26I

 लोग करोड़ों मरते प्रतिदिन,
जन्म पुनः वे पाते हैं
हजार साल का इन्तजार,
 योद्धा तुम जैसे आते हैं I27I

धर्म अधर्म का महायुद्ध ,
जीत धर्म की होनी है,
 धर्म की रक्षा तुमको करनी ,
लिखा यही, अब होनी है I28I

जब-2 अत्याचार बढ़े,
 अधर्म ने जगह बनाई अपनी ,
दाता  भेजा योद्धा तुम जैसे ,
मिटा अधर्म जगह बना अपनी I29I

माया मोह के इस जगत में,

ने तेरा कोई, न तुझ से बनता है,

 क्षण भंगुर जीवन में तू,

 क्यों इठलाता फिरता है I30I

 आज जो तेरे हैं !

 भ्रम तूने पाल रखा,

 कल को  दूर-2 तक,

ना बनेगा तेरा कोई सखा I31I

वे भी चाहें तब भी,

कुछ कर नहीं सकते ,

सदा  को इस दुनिया में,

वे भी जुड़ नहीं सकटे   I32I

यही रहस्य इस दुनिया में,

 समझ से बाहर रहता है ,

तुझको यही समझना होगा,

 जो दाता तुझसे कहता है I33I

 कर्म किया किया है जिसने जैसा,

 फल उसका निर्धारित है,

(बीता हुआ- कल -- कृपया ध्यान दें कर्म के बाद भाग्य है)

 

कल का कर्म आज का भाग्य,

 नियम यही संचालित है I34I

 जब-2  धर्म की होगी हानि,

 अधर्म बढ़ाता अत्याचार ,

तय सीमा से आगे, अर्जुन

 न बढ़ पायेगा अत्याचार I35I

इसे थामने की ताकत ,

तुम जैसे योद्धा करते हैं ,

तेरी ताकत के आगे , अर्जुन

नतमस्तक सब होते हैं  I36I

आत्मा ,अजर ,अमर

न कभी ये मरती है,

 इसका काम खत्म होता,

 नवजीवन धारण करती है I37I

कर्म करो बस कर्म करो,

फल की इच्छा कभी न करना,

 जैसा तेरा कर्म होगा , अर्जुन

अनुरूप उसी के सबकुछ मिलना I38I

पाक साफ दिल से रहना ,

धर्म की खातिर आगे बढ़ना,

 मिटेगा अधर्म ; होगा अर्जुन

प्रकाश पुञ्ज से जगत का खिलना I39I

        कर्म का मिला अधिकार ,(तुझे )   ,

कर्म स्वयं ही करना है,

 जैसे तेरे कर्म होगें , अर्जुन

अनुरूप उन्ही के भरना I40I

देखो भीष्म पितामह को,
 वचनबद्धता बनी कमजोरी ,
सिद्धान्त प्रिय हैं व्यक्ति महान,
 चली ना इन की सीनाजोरी I41I
द्रुयों धन जैसा योद्धा बलशाली ,
शातिर दिमाग उसका चलता ,
कटु वचन उनसे कहता ,
नहीं किसी की चलने देताI42I
अर्जुन सबसे प्रिय हो तुम ,
असहाय हैरान हैं पितामह ,
नहीं चाहते युद्ध वे बिल्कुल,
 ये होता बोलो किसकी शहI43I
शिक्षा जिनसे तुमने पाई ,
प्यार से तुम्हें सिखलाया ,
आज उन्हीं हाथों में देखो,
 विरुद्ध तुम्हारे तरकश आयाI44I
भाई ! हां भाई है सारे तेरे अर्जुन ,
खून के प्यासे तेरे हैं ,
नहीं युद्ध धरा पे हो ,
ये न बस में तेरे है.I45I
 परिस्थिति बनी प्रतिकूल ]
सारे योद्धा फेल हुए ]
जो होना है वो होता है
 इनमें कभी ना मेल हुए I46I
 Iवही खून इ क परिवार पुराना,
 दुनिया जिनसे भय खाती ,
खून बना खून का दुश्मन,
 किस्मत इसको सामने लातीI47I

 सभी समझते इसको ,

युयुत्सु दुर्योधन है मजबूरी,
साथ चाहते हैं सब ,
पर पैदा की इस ने दूरी I50I
 मन करता और दिल चाहता ,
प्यार से मसले सुलझाएँ,
 परिणाम हाथ से दूर हमारे ,
क्या होगा? हम क्या पाएँ ?I51I
पुत्र प्रेम में डूबे इतने,
धृतराष्ट्र तुम्हारे अपने ,
जिन हाथों ने बचपन सींचा ,
टूट. गये अब सारे सपने I52I
चिन्तित हैं वे भी ,!
परिणाम अदेंशा भय लाता ,
अर्जुन! तेरी ताकत के आगे,
 घबराहट से दिल बैठा जाता I53I
 पुत्र मोह में इतनी लाचारी,
 क्या दुनिया की कमजोरी ?
 सभी विरासत चाहते हैं ,
सदा बढ़े ये तेरी मेरी I54I

शाकुनि बन के अधर्म ,
घर में चुपके  से आया,
 सत्य न्याय की हरेक चाल पे ,
परचम अपना लहराया I55I
सभी जानते सभी समझते ,
नुकसान केवल अपना होना,
 पता नहीं क्या मजबूरी
सोना अपने हाथ से खोना I56I
व्यक्ति बड़ा न होता है
 खून सभी का लाल.
सोच हमारी मानसिकता
अवरूद्ध करे बेडि़यां डाल I57I
जीवन का मानक नहीं कभी ,
हीरे जवाहरात सोना है
मिलते खोते वक्त बीतता,
 क्या इसके लिए रोना है! I58I
आज जो मेरा है ,
कल तेरा बन जायेगा ,
किस्मत उसकी चलना है
 छोड़ साथ वह जायेगा.I59I
हंसी का पात्र बने हम सब
समझबूझ सब रखते हैं
 श्मशानघाट  पे जा के देखो
जीवन का मर्म समझते हैं I60I

धर्म का मार्ग न्यायकारी

अधर्म वेष बदलता है I

गुमराह करे ये चुपके से,

साथ धर्म के चलता है I61I

 

कमजोरी कापुतला इंशा

कमजोरी  गुलाम  बनाती है I

नहीं चाहते करता वो ,

कमजोरी सदा सताती है I62I

ले के धर्म का नाम,

बढ़ता चलता अधर्म यहाँ ,

लहू का प्यासा जीवों का,

इसको कैसी शर्म यहाँ I63I

कमजोरी का फायदा ,

ले ता हुआ यहाँ खड़ा,

देख यहाँ मुस्काता,

 भाई को भाई से लड़ा I64I

धर्म बनेगा कमजोर यहाँ ,

जब होगी धर्म की हानी,

इसकी रक्षा करने की ,

ताकत वीरों से आनी I65I

जरा चूक हुई, भूलहुई,

अधर्म पैर पसारे,

सदियों तक लड़ना होता  है,

कष्ट उठाते हैं सारे I66I 

 

                   

सोच समझ की  शक्ति पंगु
अर्जुन रहा ढोल का ढोल ,
बार - बार माधव समझाते ,
 निकलें बच्चों जैसे बोल I67I
अर्जुन का भ्रम था , ये
या मोह में भूल गया सब,
घेरे से बाहर सोच न जाये
“ अब, अर्जुन ! जानोगे तुम कब” I68I
तत्व  के मर्म जानो,
चिरस्थायी नहीं होता
करो कल्पना वक्त की
क्या देखा न अपनों को रोता I69I
वक्त - वक्त की बात है
ये इन्तजार नहीं करता ,
फेरी वाला डेरा है ये ,
त्या ग सभी ये बढ़ता रहता I70I
कितने आये और चले गये,
अब भी जाने को तैयार
क्रम में खड़े सभी है,
 बारी का है इन्तजार I71I
याद रखो अर्जुन तुम,
करू ना करू में समझो फर्क,
 निर्णय लेना सीखो तुम,
 फालतू के न रखो तर्क I72I
 सीमा पे प्रहरी जगता है
 और जन सारे सोते हैं
स्वयं झेलता दिक्कत वो
 हंसते -हंसते रहते हैं  I73I
निर्णय में चूक नहीं उ न के,
 दुश्मन उससे थर्राता है,
 तैयार है हरदम वो
दुश्मन उ न से घबराता है,I74I
नमन है वीर सपूतों को ,
त्याग सदा है सर्वोपरि.
इनके कारण देश सुरक्षित,
नहीं है कोई इनसे ऊपर,  I75I
धर्म का प्रतीक हो ,तुम पार्थ!,
अधर्म तुम्हें मिटाना है,
फल तेरी इच्छा के बाहर ,
पर इससे तुमको लड़ना है I76I
जीना है तो ऐसे जियो ,
फक्र करे जमाना तुम पर,
मर भी जायें छोड़ सभी ,
इतिहास बहाये आंसू तुम पर, I77I
स्वर्ण अक्षर में नाम लिखें ,
गुणंगान करें सारा जमाना,
याद करें और आंसू निकले ,
पार्थ ! ऐसा नाम कमाना I78I

 


शेष कल

 

निपट निरक्षर अज्ञानी है हम ,किससे, क्या लेना, क्या देना I

कृपा बनाये रखना, कृष्णा, शरणागत बस अपनी लेना II


(अर्चना  राज)

 


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