Saturday, 7 March 2015

00186--Happy Holi (Hindi Poem-00152)

(Dedicated to the Sweet Memories of the Departed Soul of Dr.Rajeev Kumar Singh and Gudia ,Both relation)

नफरत दूर हटाती,
गले प्रेम से हमें मिलाती ,
खुशियां सारी घर में लाती,
विछुड़ो की ये याद दिलाती,
मिलते सारे पेम से प्यारे,
गाते, कहते, होली आई रे !
आई रे ! , आई रे ! ,होली आई रे ! (1)
जबान न जाने, कब-2 चलती,
दिलों में कुछ के कटुता भरती,
कुछ को हमसे दूर है करती,
होली आती ,गले मिलाती,
नाचें, कूदे, झूमें, प्यारे,
गाते, कहते, होली आई रे !
आई रे ! , आई रे ! ,होली आई रे ! (2)
बच्चे मन के सच्चे,
लेकें दौड़ें भर पिचकारी,
नहीं किसी का बन्धन है,
रंग बिखरे चले पिचकारी,
खेलते कूदते. लगते प्यारे,
गाते, कहते, होली आई रे !
आई रे ! , आई रे ! ,होली आई रे ! (3)
बीमार प डे भी आते बाहर,
देख-2 मन को हर्षाते,
गले मिते भरते रंग,
खाते गुजियां मन मुस्काते,
बड़े प्रेम से मिलकर गाते,
कहते, ये त्यौहार निराला रे  !
गाते, कहते, होली आई रे !
आई रे ! , आई रे ! ,होली आई रे ! (4)
कान्हा खेलें राधा आतीं,
वृन्दावन में शमां बधातीं,
गीत प्रेम के मिलकर गातीं,
रंग गुलाल से गलिंयां भरती,
कृपा कान्हा की हम को मिलती,
दिल से गीत के रसगुल्ले छोड़े,
बृज के गीत निराले रे
गाते, कहते, होली आई रे !
आई रे ! , आई रे ! ,होली आई रे ! (5)
 (अर्चना व राज)

No comments:

Post a Comment